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दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025: भाजपा की ऐतिहासिक जीत

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फ़ोटो : विकिपीडिया  सुरिन्द्र कुमार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के नतीजों ने आखिरकार राजधानी को ड़बल इंजन की सरकार दे ही दी। परिणामस्वरूप, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व में 27 वर्षों के बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सत्ता में वापसी की और 70 में से 48 सीटें जीतकर स्पष्ट बहुमत हासिल किया। आम आदमी पार्टी (आप) इस बार 22 सीटों तक सिमट गई, जबकि कांग्रेस लगातार तीसरी बार खाता खोलने में विफल रही।  इस दौरान यमुना में न जाने कितना पानी बह चुका है, और दिल्ली की हवा और पानी पहले से भी ज्यादा जहरीले हो चुके हैं। शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल में कई ऐसे फैसले और योजनाएं बनीं, जिनकी गूंज पूरे देश में सुनाई दी। अब सत्ता की बागडोर बीजेपी के हाथों में है। सवाल यह है कि डबल इंजन की सरकार की दिल्ली में एंट्री के बाद हालात कितने बदलेंगे? क्या-क्या संभावनाएं हैं, और चुनाव से पहले बीजेपी ने जनता से जो वादे किए थे, वे किस हद तक हकीकत बन पाएंगे?  यह चुनाव केवल हार-जीत की कहानी नहीं था, बल्कि कई ऐसे कारक थे, जिन्होंने मतदाताओं के निर्णय को प्रभावित किया और दिल्ली की रा...

विधानसभा सचिवालय में भर्ती घोटाला: हिमाचल में सत्ता संरक्षित भ्रष्टाचार की गूंज

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सांकेतिक चित्र : चैट जीपीटी  सुरिन्द्र कुमार : सरकारी भर्तियों में जब पारदर्शिता को दरकिनार कर सत्ता का हस्तक्षेप हावी हो जाता है, तो इसका असर केवल कुछ नियुक्तियों तक सीमित नहीं रहता, बल्कि एक व्यापक समस्या को जन्म देता है। ऐसे मामलों के बाद युवाओं में भारी असंतोष पनपता है, जो विरोध प्रदर्शनों और न्यायिक कार्रवाई की मांग को मजबूती देता है। विपक्ष इसे बड़ा मुद्दा बनाकर सरकार को कटघरे में खड़ा करता है, जिससे सदन में तीखी बहसें होती हैं और जांच की मांग तेज हो जाती है। यदि मामला तूल पकड़ता है, तो न्यायपालिका भी स्वतः संज्ञान ले सकती है, जिससे भर्ती रद्द होने या जांच बैठने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। सत्ता पक्ष अक्सर इसे बचाव की मुद्रा में खारिज करने या खानापूर्ति के लिए जांच समिति गठित करने की कोशिश करता है, जो ज्यादातर मामलों में ठंडे बस्ते में चली जाती है। इस तरह की घटनाओं से भविष्य की भर्तियों की प्रक्रिया भी प्रभावित होती है, जिससे योग्य उम्मीदवारों के लिए अवसर सीमित हो जाते हैं और पारदर्शिता पर संदेह गहरा जाता है। अगर हिमाचल विधानसभा सचिवालय जैसी संस्थाओं में ही इस तरह की धांधली हो...

दिल्ली में लोकतंत्र बनाम लोकलुभावनवाद: चुनाव 2025 की सियासी पटकथा

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सांकेतिक चित्र : चैट जीपीटी  सुरिन्द्र कुमार : दिल्ली यूं तो "दिल्ली वालों" के दिलों में बसती है, लेकिन इसकी असली चाहत क्या है—यह न कोई समझता है और न ही समझना चाहता है। स्वच्छ हवा और शुद्ध पानी से जनता वंचित है, परंतु मुफ्त सुविधाओं की राजनीति अपने चरम पर है। जिसे प्रकृति ने बिना किसी कीमत के दिया था, वही जब लोगों की जिंदगी से गायब हो जाए, तो लोकलुभावन वादों की कीमत ही क्या रह जाती है? मगर हकीकत न जनता समझ पा रही है और न ही राजनीतिक दल उसे समझने देना चाहते हैं। उनकी दिलचस्पी बस किसी भी तरह सत्ता में बने रहने तक सीमित है। दिल्ली की फिक्र किसे है? शायद उसे आज भी अपने उस 'ग़ालिब' की तलाश है, जो उसके बारे में सोचे, उसकी सच्ची तस्वीर देखे और दिखाए। चुनाव 2025 और मुफ्त योजनाओं की होड़ फरवरी 5, 2025 को दिल्ली के विधानसभा चुनाव होंगे और 8 फरवरी को नतीजे घोषित किए जाएंगे। विभिन्न राजनीतिक दल मुफ़्त सुविधाओं वाले वादों से अपनी चुनावी रणनीतियों को धार देने में जुट गए हैं। हालांकि, लोकलुभावन वादों का सहारा लेना भारतीय राजनीति में कोई नई परिघटना नहीं है, लेकिन हाल के वर्षों में यह...

"जब काम ना हो, तो नाम बदलकर ही इतिहास रच दो"

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सांकेतिक फोटो। शपथ ग्रहण के बाद ट्रंप का पहला कदम: नाम बदलकर इतिहास रचने की कोशिश जब किसी नेता के पास जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए ठोस योजनाएं न हों, तो वह प्रतीकात्मक कदमों का सहारा लेता है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही जो पहला कदम उठाया, वह इस धारणा को और मजबूत करता है। ट्रंप ने अपने कार्यकाल की शुरुआत उस परंपरा से की, जो राजनीति में नए आयाम जोड़ने के बजाय पुरानी बहसों को हवा देती है—नाम बदलने की राजनीति। सुरिन्द्र कुमार : राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले हफ्ते में ही 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' का नाम 'गुल्फ ऑफ अमेरिका' करने की मंशा जाहिर की। यह एक ऐसा कदम हो सकता है जहां वह अपने समर्थकों के बीच तो वाहवाही बटोर लें। परंतु असलियत में यह एक दिखावटी और अप्रासंगिक फैसला है। सवाल उठता है कि क्या नाम बदलने से समुद्र का पानी बदल जाएगा, या अमेरिका की अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दे हल हो जाएंगे? नाम बदलने की राजनीति: ट्रंप का पहला संदेश डोनाल्ड ट्रंप ने राजनीति में प्रतीकों की ताकत को बखूबी समझा है। शपथ के बाद उन्होंने जो पहला संदेश दिया,...

चुनावों में मुफ्तखोरी का प्रचलन: राज्य की वित्तीय स्थिति पर गहराता संकट

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प्रतीकात्मक फोटो। सुरिन्द्र कुमार : भारत में चुनावों का समय ऐसा होता है, जब राजनीतिक दलों के बीच वोट हासिल करने की होड़ मुफ्त सुविधाओं और योजनाओं के वादों के जरिए चरम पर होती है। चाहे वह मुफ्त बिजली हो, मुफ्त गैस सिलेंडर, लैपटॉप या बेरोजगारी भत्ता, हर राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए इस 'मुफ्तखोरी' की संस्कृति को बढ़ावा देता है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि इन वादों का वास्तविक परिणाम क्या होता है? मुफ्तखोरी: राजनीति की अनिवार्यता या राज्य की बर्बादी? मुफ्त योजनाओं का प्रचलन भारत में नई बात नहीं है। यह प्रवृत्ति तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से शुरू होकर देशभर में फैल गई। राजनीति में यह मान्यता बन गई है कि जनता को आकर्षित करने का सबसे सरल तरीका मुफ्त योजनाओं का वादा करना है। लेकिन इन योजनाओं की असली कीमत कौन चुकाता है? जवाब है - करदाता। तमिलनाडु: मुफ्तखोरी का प्रारंभिक केंद्र तमिलनाडु वह राज्य है, जिसने सबसे पहले मुफ्त योजनाओं को व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाया। 1967 में डीएमके का उदय डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) ने 1967 में सत्ता में आते ...

दिल्ली चुनाव 2025: लोकतंत्र की कसौटी पर राजधानी

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सांकेतिक चित्र। सुरिन्द्र कुमार : दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज़ हो चुकी हैं। चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान 5 फरवरी 2025 को होगा, और परिणाम 8 फरवरी 2025 को घोषित किए जाएंगे।  प्रमुख दलों की रणनीति: ऐतिहासिक संदर्भ में विश्लेषण दिल्ली की राजनीति का स्वरूप राष्ट्रीय राजनीति का सूक्ष्म प्रतिबिंब है। 1993 में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से यहाँ राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदला है। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में 2025 के चुनाव में प्रमुख दलों की रणनीतियों को समझना ज़रूरी है। आम आदमी पार्टी (आप): नई राजनीति का दावा साल 2013 में आम आदमी पार्टी के उदय ने दिल्ली की राजनीति को नई दिशा दी। पार्टी ने पारंपरिक राजनीति के खिलाफ जन आंदोलन से अपनी पहचान बनाई। लोकपाल आंदोलन की पृष्ठभूमि से उभरी आप ने भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी सेवाओं के वादों पर भरोसा जताया। 2025 में, पार्टी की रणनीति अपने उसी 'विकास और सेवा' मॉडल को मजबूत करने की है। पार्टी का फोकस मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार और मुफ्त बिजली-पानी योज...

डोनाल्ड ट्रम्प का शपथ ग्रहण समारोह: सत्ता में ऐतिहासिक वापसी

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सुरिन्द्र कुमार : 20 जनवरी, 2025 को डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली, जिससे वह ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद पहले राष्ट्रपति बने, जिन्होंने दो गैर-लगातार कार्यकाल पूरे किए। यह समारोह कैपिटल रोटुंडा में आयोजित हुआ, जहां खराब मौसम के कारण शपथ ग्रहण का आयोजन किया गया। #BreakingNews 🔹वाशिंगटन डीसी: डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। #DonaldTrump #DonaldTrump2025 #DonaldJTrump #OathCeremony #Inauguration2025 #USPresident #WhiteHouse #Trump @IndianEmbassyUS | @WhiteHouse | @MEAIndia pic.twitter.com/RnHxmT0874 — आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) January 20, 2025 दुनिया भर से इस आयोजन को देखा गया, और ट्रम्प के सत्ता में लौटने के साथ यह उम्मीद जताई गई कि वह अपने "अमेरिका फर्स्ट" के सिद्धांतों को जारी रखेंगे, साथ ही वैश्विक नेतृत्व की बदलती गतिशीलताओं को भी उजागर करेंगे। भारत और अन्य देशों के लिए इस आयोजन के व्यापार, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव थे। शपथ ग्रहण समारोह यह समारोह भव्यता और ...