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सांकेतिक चित्र। |
सुरिन्द्र कुमार: दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज़ हो चुकी हैं। चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान 5 फरवरी 2025 को होगा, और परिणाम 8 फरवरी 2025 को घोषित किए जाएंगे।
प्रमुख दलों की रणनीति: ऐतिहासिक संदर्भ में विश्लेषण
दिल्ली की राजनीति का स्वरूप राष्ट्रीय राजनीति का सूक्ष्म प्रतिबिंब है। 1993 में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से यहाँ राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदला है। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में 2025 के चुनाव में प्रमुख दलों की रणनीतियों को समझना ज़रूरी है।
आम आदमी पार्टी (आप): नई राजनीति का दावा
साल 2013 में आम आदमी पार्टी के उदय ने दिल्ली की राजनीति को नई दिशा दी। पार्टी ने पारंपरिक राजनीति के खिलाफ जन आंदोलन से अपनी पहचान बनाई। लोकपाल आंदोलन की पृष्ठभूमि से उभरी आप ने भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी सेवाओं के वादों पर भरोसा जताया।
2025 में, पार्टी की रणनीति अपने उसी 'विकास और सेवा' मॉडल को मजबूत करने की है।
- पार्टी का फोकस मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार और मुफ्त बिजली-पानी योजनाओं पर है, जिसे वह अपनी ऐतिहासिक उपलब्धि बताती है।
- हालांकि, शराब नीति घोटाला और अरविंद केजरीवाल का इस्तीफा पार्टी के लिए नकारात्मक पहलू बन गए हैं। यह 2013 और 2015 की भ्रष्टाचार विरोधी छवि के विपरीत है।
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा)
भाजपा ने 1993 से लेकर 1998 तक दिल्ली पर शासन किया। मदन लाल खुराना, साहिब सिंह वर्मा, और सुषमा स्वराज जैसे नेताओं के नेतृत्व में भाजपा ने विकास और स्थिरता पर जोर दिया।
इस चुनाव में, भाजपा अपनी वही पुरानी 'स्थिर प्रशासन' और 'राष्ट्रवाद' की छवि को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है।
भाजपा का आधार हमेशा व्यापारिक वर्ग, पारंपरिक वोट बैंक और शहरी मध्यवर्ग रहा है। वह केंद्र सरकार की योजनाओं, जैसे आयुष्मान भारत और उज्ज्वला योजना, को दिल्ली में लागू करने का दावा कर रही है।
कांग्रेस: पुनरुत्थान की कोशिश
कांग्रेस का दिल्ली में स्वर्णिम युग 1998 से 2013 तक रहा, जब शीला दीक्षित ने मुख्यमंत्री रहते हुए बुनियादी ढांचे और मेट्रो परियोजनाओं पर जोर दिया। पार्टी 2025 में, कांग्रेस अपनी ऐतिहासिक उपलब्धियों को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर रही है।
कांग्रेस 'शीला दीक्षित मॉडल' को याद दिलाकर अपना खोया हुआ वोट बैंक वापस लाना चाहती है। लेकिन अब संगठनात्मक कमजोरियों और नेतृत्व संकट से जूझ रही है। 2013 के बाद से पार्टी का जनाधार लगातार कमजोर हुआ है।
पृष्ठभूमि और राजनीतिक परिदृश्य
पिछले चुनाव में आम आदमी पार्टी ने ऐतिहासिक जीत दर्ज की थी और 62 सीटों पर कब्जा जमाया था, जबकि भाजपा को 8 सीटें मिली थीं। कांग्रेस का खाता भी नहीं खुला था। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की नेतृत्व वाली सरकार ने मुफ्त बिजली, पानी, और शिक्षा जैसे मुद्दों पर जनता का भरोसा कायम रखा। हालांकि, हालिया घटनाओं में शराब नीति से जुड़े विवाद और मुख्यमंत्री के इस्तीफे ने आप की छवि को चुनौती दी है।
दिल्ली का मतदाता इस बार भी विकास और सेवा आधारित राजनीति की अपेक्षा कर रहा है। सी-वोटर और अन्य सर्वेक्षणों के अनुसार, आप अभी भी मजबूत स्थिति में है, लेकिन भाजपा ने अपनी स्थिति को पिछले चुनाव से बेहतर किया है।
वर्ष 2013 से 2025 तक का दिल्ली का राजनीतिक सफर भारतीय लोकतंत्र के बदलते स्वरूप का प्रतिबिंब है। इस अवधि में आम आदमी पार्टी ने अपने सेवा-आधारित मॉडल से पारंपरिक राजनीति को चुनौती दी, भाजपा ने राष्ट्रवाद और स्थिरता के एजेंडे को केंद्र में रखा, और कांग्रेस ने अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष किया। दिल्ली के मतदाताओं ने बार-बार यह स्पष्ट किया है कि वे विकास, बुनियादी सेवाओं, और पारदर्शिता को प्राथमिकता देते हैं।
यह चुनाव केवल सत्ता परिवर्तन तक सीमित नहीं है, बल्कि यह तय करेगा कि क्या दिल्ली की जनता स्थानीय मुद्दों और सेवा आधारित राजनीति को जारी रखेगी, या फिर वैचारिक राजनीति और राष्ट्रीय एजेंडे को महत्व देगी। दिल्ली का यह राजनीतिक परिदृश्य न केवल राष्ट्रीय राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि आने वाले वर्षों में शहरी लोकतंत्र का दिशा-निर्देशन भी करेगा।
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