हिमाचल प्रदेश में राजनीतिक उथल-पुथल


सुरिन्द्र कुमार : हिमाचल प्रदेश जो अपने शांत वातावरण के लिए जाना जाता है। हाल ही में राज्यसभा चुनाव के बाद राज्य राजनीतिक उथल-पुथल के बवंडर में फंस गया है। इस चुनावी मुकाबले के बाद घटनाओं की एक श्रृंखला शुरू हो चुकी है। जिसने राज्य के राजनीतिक परिदृश्य को अस्त-व्यस्त कर दिया है और इसके शासन को अनिश्चितता में डाल दिया है। 

राज्यसभा चुनाव में सत्तारूढ़ पार्टी कांग्रेस को बहुत ही बड़ा झटका लगा हैं क्योंकि उसके उम्मीदवार अभिषेक मनु सिंघवी बीजेपी समर्थित और कांग्रेस से बीजेपी में आए उम्मीदवार हर्ष महाजन से चुनाव हार गए हैं। उनकी यह हार कुछ विधायकों द्वारा पार्टी व्हिप की अवहेलना करने और आधिकारिक कांग्रेस उम्मीदवार के खिलाफ मतदान करने के परिणामस्वरूप हुई है। सत्तारूढ़ दल के भीतर इस विद्रोह के परिणामस्वरूप कांग्रेस सिंघवी का हिमाचल फतह करने का सपना अधूरा रह गया। जिससे पार्टी नेतृत्व काफी निराशा में पहुँच चुका है। 

केंद्र सरकार की पैनी नज़र

इस चुनावी झटके का असर केवल दलीय राजनीति तक ही सीमित नहीं था। राज्य के मामलों में केंद्र सरकार की दिलचस्पी तब स्पष्ट हो गई जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली राज्य सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों के बारे में अफवाहें सामने आईं। 

हिमाचल प्रदेश में सत्ता पर कब्ज़ा करने के अवसर पर नज़र रखने वाली भाजपा के साथ संभावित दल-बदल और राज्य विधानसभा में संभावित शक्ति परीक्षण के बारे में अटकलें तेज हो गई हैं। हिमाचल प्रदेश में चल रही गतिशीलता भारत के बड़े राजनीतिक परिदृश्य को दर्शाती है। जहां प्रतिद्वंद्वी दलों के बीच सत्ता संघर्ष अक्सर केंद्र में रहता है। राज्यसभा चुनाव परिणाम ने राज्य में नियंत्रण और प्रभाव के लिए कांग्रेस और भाजपा दोनों के बीच बढ़ती राजनीतिक पैंतरेबाज़ी के लिए उत्प्रेरक का काम किया। 

सरकार में संभावित बदलाव की संभावना ने हिमाचल प्रदेश के राजनीतिक परिदृश्य पर अनिश्चितता का माहौल बना दिया है। चूँकि कांग्रेस और भाजपा दोनों वर्चस्व के लिए रस्साकशी में लगे हुए हैं। राज्य का शासन अनिश्चित रूप से अधर में लटका हुआ है। राजनीतिक नाटक के बीच राज्य भाजपा ने मुखर रुख अपनाते हुए कांग्रेस सरकार पर उसकी कथित अक्षमता और कुप्रबंधन के लिए हमला बोला है। उन्होंने राज्यसभा चुनाव की हार को कांग्रेस के घटते प्रभाव के सबूत के रूप में लिया है और राज्य में सत्ता परिवर्तन का आह्वान किया है।

असमंजस में जनता

इन घटनाक्रमों के बीच लोकतांत्रिक प्रक्रिया की स्थिरता और अखंडता को लेकर सवाल उठते हैं। इसके अलावा निर्वाचित प्रतिनिधियों में जनता के विश्वास में कमी से लोकतांत्रिक प्रक्रिया की विश्वसनीयता और भी कम होना लाजमी है। राजनीतिक अवसरवादिता और पर्दे के पीछे के लेन-देन से निराश मतदाता अपने नेताओं से अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की मांग करते हैं। अनिश्चितता के इस युग में हिमाचल प्रदेश के लोग ऐसे चौराहे पर फंस चुके हैं जहाँ वे अब स्थिरता और अखंडता के लिए तरस रहे हैं। जैसे-जैसे राजनीतिक दल सत्ता और प्रभाव के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

जैसे-जैसे राज्य ऐसे अशांत दलदल से गुजरेगा। इन घटनाओं के नतीजे लोकतांत्रिक संस्थानों की नाजुकता और राजनीतिक औचित्य के सामने लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने की अनिवार्यता की याद दिलाते रहेंगे। उसके लोकतांत्रिक ताने-बाने के लचीलेपन की परीक्षा होगी। जिसके शासन और भविष्य की राह पर दूरगामी परिणाम होंगे।


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