हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड: दो पहाड़ी राज्यों की आर्थिक विकास यात्रा
सुरिन्द्र कुमार: हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड, भारत के दो प्रमुख पहाड़ी राज्य, अपनी प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर, और पर्यावरणीय विविधता के लिए प्रसिद्ध हैं। इन दोनों राज्यों ने अपनी अनूठी चुनौतियों और अवसरों के बीच आर्थिक विकास के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। इस लेख में हम दोनों राज्यों की आर्थिक स्थिति का तुलनात्मक विश्लेषण करेंगे, ताकि उनकी प्रगति, चुनौतियों और विकास के क्षेत्रों को बेहतर समझा जा सके।
भौगोलिक और सामाजिक पृष्ठभूमि
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड का गठन क्रमशः 1948 और 2000 में हुआ। दोनों राज्यों का अधिकांश क्षेत्र पहाड़ी है, जो आर्थिक विकास में बाधा भी बनता है और संभावनाएं भी प्रदान करता है। हिमाचल प्रदेश का क्षेत्रफल 55,673 वर्ग किलोमीटर है और इसकी आबादी लगभग 70 लाख है। दूसरी ओर, उत्तराखंड का क्षेत्रफल 53,483 वर्ग किलोमीटर है और इसकी जनसंख्या करीब 1.1 करोड़ है।
जनसंख्या और क्षेत्रफल में यह अंतर इन राज्यों की आर्थिक प्राथमिकताओं को प्रभावित करता है। हिमाचल प्रदेश में प्रति व्यक्ति संसाधन अधिक उपलब्ध हैं, जबकि उत्तराखंड की अधिक जनसंख्या उसे श्रम आधारित अर्थव्यवस्था के लिए अवसर प्रदान करती है।
सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP)
हिमाचल प्रदेश का GSDP वित्तीय वर्ष 2022-23 में ₹1.91 लाख करोड़ था, जबकि उत्तराखंड का GSDP ₹3.05 लाख करोड़ था।
हालांकि, प्रति व्यक्ति आय के मामले में उत्तराखंड हिमाचल प्रदेश से आगे है। उत्तराखंड की प्रति व्यक्ति आय ₹2,74,012 थी, जबकि हिमाचल प्रदेश की ₹2,18,788 रही।
आर्थिक संरचना और क्षेत्रीय योगदान
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की अर्थव्यवस्था तीन प्रमुख क्षेत्रों—प्राथमिक, द्वितीयक और तृतीयक—पर आधारित है। हर एक क्षेत्र की अपनी विशेषताएँ और योगदान हैं, जो राज्य के आर्थिक विकास को प्रभावित करते हैं।
प्राथमिक क्षेत्र (कृषि और बागवानी)
प्राथमिक क्षेत्र में कृषि और बागवानी का योगदान है, जो दोनों राज्यों की अर्थव्यवस्था का अहम हिस्सा है। इस क्षेत्र में उत्पादन का मुख्य आधार प्राकृतिक संसाधन और उपजाऊ भूमि हैं।
हिमाचल प्रदेश
हिमाचल प्रदेश में कृषि और बागवानी का योगदान 14.06% है। राज्य की कृषि व्यवस्था मुख्य रूप से पर्वतीय क्षेत्रों में फैली हुई है, जहां सेब, आलू, संतरा, अंगूर, पाइनएप्पल, और अन्य बागवानी उत्पाद बड़े पैमाने पर उत्पादित होते हैं। हिमाचल प्रदेश विशेष रूप से सेब उत्पादन में अग्रणी है, जो राज्य की प्रमुख कृषि आय का स्रोत है। इसके अलावा, चाय, मटर, और बूटलेग जैसे उत्पाद भी राज्य की कृषि का हिस्सा हैं। बागवानी क्षेत्र राज्य की कृषि आय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उत्तराखंड
उत्तराखंड में कृषि और बागवानी का योगदान 12.5% है। राज्य में चावल, गेहूं, मक्का, मसाले और अन्य सामान्य कृषि उत्पादों की खेती होती है। हालांकि, उत्तराखंड की कृषि व्यवस्था हिमाचल प्रदेश की तुलना में कुछ हद तक कम विविधतापूर्ण है, लेकिन यहां की जलवायु और भूमि कृषि के लिए अनुकूल हैं। राज्य में कृषि की विकास दर बढ़ी है, और सरकार ने बागवानी और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएँ शुरू की हैं।
द्वितीयक क्षेत्र (उद्योग और निर्माण)
द्वितीयक क्षेत्र में उद्योग और निर्माण क्षेत्र शामिल हैं, जो आर्थिक विकास में बड़ा योगदान देते हैं। इस क्षेत्र का उद्देश्य कच्चे माल से तैयार उत्पाद बनाना है।
हिमाचल प्रदेश:
हिमाचल प्रदेश में द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 42.44% है। राज्य का औद्योगिक परिदृश्य मजबूत है और यहां फार्मास्युटिकल उद्योग एक प्रमुख भूमिका निभाता है। राज्य में कई बड़ी दवाइयों और जीवन रक्षक उत्पादों की फैक्ट्रियाँ हैं, जो न केवल भारतीय बाजार बल्कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी निर्यात होती हैं। इसके अतिरिक्त, छोटे और मध्यम आकार के उद्योग जैसे खाद्य प्रसंस्करण, हस्तशिल्प, और निर्माण उद्योग भी राज्य की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान करते हैं। राज्य में स्थापित जल विद्युत परियोजनाओं और निर्माण कार्यों ने भी राज्य की औद्योगिक क्षमता को बढ़ाया है।
उत्तराखंड:
उत्तराखंड में द्वितीयक क्षेत्र का योगदान 34% है, जो हिमाचल प्रदेश से कुछ कम है। उत्तराखंड में बिजली उत्पादन और भारी उद्योग प्रमुख हैं। राज्य में जलविद्युत परियोजनाओं का बड़ा नेटवर्क है, और यहां बिजली उत्पादन का बड़ा हिस्सा उत्पादित होता है। इसके अलावा, उत्तराखंड में वस्त्र उद्योग, निर्माण, और गहनों की निर्माण इकाइयाँ भी स्थापित हैं। राज्य में उच्च गुणवत्ता के उत्पादों के निर्माण की क्षमता बढ़ रही है, और औद्योगिक उत्पादन में बढ़ोतरी हो रही है।
तृतीयक क्षेत्र (सेवाएं)
तृतीयक क्षेत्र में सेवाएँ, जैसे कि पर्यटन, स्वास्थ्य, शिक्षा, बैंकिंग, और व्यापार आदि शामिल हैं। यह क्षेत्र राज्य की कुल अर्थव्यवस्था में बढ़ता हुआ योगदान दे रहा है।
उत्तराखंड:
उत्तराखंड का तृतीयक क्षेत्र 53.5% का योगदान करता है, जो इसे राज्य की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में प्रस्तुत करता है। राज्य का पर्यटन क्षेत्र इसका प्रमुख हिस्सा है, क्योंकि उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन का बड़ा केंद्र है। केदारनाथ, बद्रीनाथ, हरिद्वार, और ऋषिकेश जैसे प्रमुख तीर्थ स्थल लाखों पर्यटकों को आकर्षित करते हैं, जो राज्य की आय का एक प्रमुख स्रोत हैं। इसके अलावा, स्वास्थ्य सेवाओं, शिक्षा, और परिवहन क्षेत्र में भी बड़ी संख्या में लोग कार्यरत हैं।
हिमाचल प्रदेश:
हिमाचल प्रदेश का तृतीयक क्षेत्र 43.5% का योगदान देता है, जो उत्तराखंड से थोड़ा कम है, लेकिन फिर भी महत्वपूर्ण है। पर्यटन, शिक्षा, और स्वास्थ्य सेवाओं का राज्य की अर्थव्यवस्था में बड़ा स्थान है। हिमाचल प्रदेश साहसिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र है, और यहां ट्रैकिंग, पर्वतारोहण, और अन्य गतिविधियों के कारण पर्यटकों की संख्या हर वर्ष बढ़ती है। इसके अलावा, राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य क्षेत्र में भी सुधार किए गए हैं।
पारिस्थितिक पर्यटन (Eco-tourism)
ग्रेट हिमालयन नेशनल पार्क, पिन वैली नेशनल पार्क और काजा जैसे स्थलों में पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा दिया जा रहा है।
हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था में पर्यटन का योगदान लगभग 7% है। यह स्थानीय रोजगार सृजन, शिल्पकला के प्रोत्साहन और सेवा क्षेत्र के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
उत्तराखंड धार्मिक पर्यटन और साहसिक गतिविधियों के लिए जाना जाता है। इसे "देवभूमि" भी कहा जाता है, क्योंकि यह हिंदू धर्म के प्रमुख तीर्थ स्थलों का घर है।
पारिस्थितिक और वेलनेस पर्यटन
नेशनल पार्क (जिम कॉर्बेट और राजाजी नेशनल पार्क) और योग-आयुर्वेद केंद्र (मुख्यतः ऋषिकेश) उत्तराखंड की विशेषता हैं।
योगदान:
उत्तराखंड में पर्यटन का योगदान GSDP में लगभग 10% है। धार्मिक पर्यटन के कारण सेवा क्षेत्र को बड़ा लाभ मिलता है और स्थानीय व्यापार में उछाल आता है।
पर्यटन का व्यापक प्रभाव
1. रोजगार सृजन:
दोनों राज्यों में पर्यटन उद्योग लाखों लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार प्रदान करता है। होटल, परिवहन, शिल्प, और गाइड सेवाओं में कार्यरत लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
2. स्थानीय शिल्प और उत्पादों को बढ़ावा:
- हिमाचल प्रदेश में किन्नौरी शॉल, चंबा रुमाल, और हस्तशिल्प को बढ़ावा मिलता है।
- उत्तराखंड में रिंगाल शिल्प, तांबे के बर्तन, और कुमाऊंनी उत्पाद पर्यटन के माध्यम से प्रसिद्ध हो रहे हैं।
3. राजस्व संग्रह:
पर्यटन के माध्यम से राज्यों को बड़ा राजस्व प्राप्त होता है। होटल टैक्स, प्रवेश शुल्क, और परिवहन कर राज्यों के वित्तीय संसाधन को बढ़ाते हैं।
चुनौतियाँ और समाधान - हिमाचल प्रदेश
अत्यधिक पर्यटन से पर्यावरणीय क्षति, कचरा प्रबंधन की समस्या, और शहरीकरण का दबाव बढ़ रहा है। सरकार ने "सतत पर्यटन" (Sustainable Tourism) की दिशा में कदम उठाए हैं।
उत्तराखंड में तीर्थयात्राओं के दौरान भारी भीड़, प्रदूषण, और ट्रैफिक जाम प्रमुख समस्याएं हैं। चार धाम यात्रा को अधिक संगठित और पर्यावरण-अनुकूल बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं।
रोजगार और बेरोजगारी
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड की बेरोजगारी दर में स्पष्ट अंतर राज्य की आर्थिक संरचना और विकास के विभिन्न पहलुओं को दर्शाता है। हिमाचल प्रदेश की बेरोजगारी दर 4.4% है, जबकि उत्तराखंड में यह केवल 2.1% है। यह अंतर मुख्य रूप से उत्तराखंड के सेवा क्षेत्र और औद्योगिक विकास के कारण है।
इसके अतिरिक्त, उत्तराखंड में औद्योगिक विकास भी रोजगार के अवसर बढ़ाने में सहायक है। हरिद्वार, रुड़की, और देहरादून जैसे औद्योगिक और शहरी क्षेत्रों में कई बड़े उद्योग स्थापित हैं, जो कुशल और अकुशल श्रमिकों के लिए रोजगार प्रदान करते हैं। इसके विपरीत, हिमाचल प्रदेश की अर्थव्यवस्था मुख्यतः कृषि और बागवानी पर निर्भर है। सेब उत्पादन और अन्य बागवानी गतिविधियों से राज्य की बड़ी आबादी को आजीविका तो मिलती है, लेकिन यह कार्य मौसमी और सीमित होता है। इसके अलावा, औद्योगिक विकास हिमाचल प्रदेश में सीमित है, जो रोजगार के पर्याप्त अवसर सृजित नहीं कर पाता।
हिमाचल प्रदेश में रोजगार के अवसरों की कमी का एक और कारण श्रमिकों का अन्य राज्यों में पलायन भी है। युवा पीढ़ी, विशेष रूप से शिक्षित और कुशल श्रमिक, नौकरी की तलाश में हिमाचल से बाहर जाने को मजबूर होती है। इसके विपरीत, उत्तराखंड में तकनीकी और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की अधिकता स्थानीय युवाओं को कुशल बनाती है और रोजगार के लिए पलायन को कम करती है।
इस प्रकार, दोनों राज्यों की बेरोजगारी दर उनके विकास की प्राथमिकताओं और संसाधनों के उपयोग पर निर्भर करती है। हिमाचल प्रदेश को अपने कृषि क्षेत्र में नवाचार और औद्योगिक आधार को मजबूत करने की आवश्यकता है, जबकि उत्तराखंड को अपने पर्यावरण और संसाधनों के संरक्षण के साथ रोजगार सृजन की योजनाओं को स्थिर बनाए रखना चाहिए। दोनों राज्यों के लिए आर्थिक संतुलन और समग्र विकास के प्रयास करना जरूरी है ताकि रोजगार के अधिक अवसर उत्पन्न हों और बेरोजगारी जैसी समस्या का समाधान हो सके।
महिला सशक्तिकरण और शिक्षा साक्षरता दर
हिमाचल प्रदेश की साक्षरता दर 82% है, जो राज्य की शिक्षा प्रणाली की मजबूती और व्यापकता को दर्शाती है। वहीं, उत्तराखंड में साक्षरता दर 79% है, जो राष्ट्रीय औसत से ऊपर है और राज्य की शिक्षा नीति में सुधार को दिखाता है।
चुनौतियाँ और संभावनाएँ
हिमाचल प्रदेश को अपने उद्योग और सेवा क्षेत्र का विस्तार करते हुए राज्य की आर्थिक संरचना को और अधिक सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है। इसके साथ ही कृषि और बागवानी उत्पादों के लिए व्यापक और प्रभावी बाजार उपलब्ध कराना होगा, जिससे किसानों और बागवानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य मिल सके और राज्य की ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।
उत्तराखंड को शहरीकरण और जनसंख्या प्रबंधन की चुनौतियों का कुशलतापूर्वक सामना करना होगा, ताकि राज्य की प्राकृतिक और सामाजिक संरचना संतुलित बनी रहे। पर्यावरणीय क्षति को रोकने के लिए टिकाऊ विकास की नीतियाँ और प्रभावी कदम उठाने होंगे, जिससे राज्य की जैव विविधता और प्राकृतिक संसाधन संरक्षित रहे।
यह कहना उचित होगा कि हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड भारत के विकासशील राज्यों के लिए प्रेरणा के स्रोत हैं। इनकी प्रगति यह साबित करती है कि कठिन भौगोलिक परिस्थितियों में भी संतुलित और समग्र विकास संभव है। दोनों राज्यों के सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) में बड़ा अंतर देखा जाता है।
यह अंतर उत्तराखंड के औद्योगिक विकास और विस्तृत सेवा क्षेत्र के कारण उत्पन्न हुआ है, जबकि हिमाचल प्रदेश अपनी कृषि और बागवानी पर अधिक निर्भर है।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड दोनों ही अपने वन क्षेत्र और पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिमाचल प्रदेश का 27.72% क्षेत्र वनों से आच्छादित है, जबकि उत्तराखंड का 45.44% क्षेत्र वनों से आच्छादित है, जो इसे देश के सबसे हरे-भरे राज्यों में शामिल करता है। हालाँकि, हिमाचल प्रदेश ने वनीकरण और पारिस्थितिकी संरक्षण में कई उल्लेखनीय कदम उठाए हैं, जो इसे पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अग्रणी बनाते हैं।
उत्तराखंड के घने जंगल न केवल पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में सहायक हैं, बल्कि हिमालयी वनस्पतियों और जीव-जंतुओं के लिए सुरक्षित आश्रय स्थल भी हैं। वहीं, हिमाचल प्रदेश के वनीकरण अभियानों और पर्यावरणीय स्थिरता सुनिश्चित करने वाली नीतियों ने जलवायु परिवर्तन से निपटने में राज्य की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित किया है। दोनों राज्यों का यह संतुलन प्राकृतिक संसाधनों के सतत उपयोग और पर्यावरणीय संवेदनशीलता को दर्शाता है।
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