सरकार का साहसिक कदम
द ईरावती: इसमें कोई अतिशियेक्ति नहीं कि हिमाचल शिक्षित राज्यों में होती क्योंकि प्रदेश को केरला के पश्चात बेहतरीन शिक्षित राज्य का दर्जा प्राप्त है। फिर भी यहां के प्रशासन के लिए एक परीक्षा करवा पाना टेढ़ी खीर हो चुका है। अब यह चाहे विश्वविद्दालय का हो या हो या पुलिस प्रशासन या कर्मचारी चयन आयोग सब ने प्रदेश की ईमानदार ख्याति को ध्वस्त किया है। ये कोई एक महज़ इल्जाम नहीं ब्लकि कटु सत्य है। हाल ही में हुआ एक प्रकरण जिसमें कर्मचारी चयन आयोग की नौकरशाही की क्रूरता की ऐसी झलक सामने आई जिसने लाखों नौकरी की चाह रखने वाले युवाओं की मेहनत को जैसे बर्बाद करने का जिम्मा उठा लिया हो। परीक्षा पेपरों की सेल अमेज़न पर नए साल के ऑफर के साथ लगनी बाकी थी।
राज्य में एक के बाद एक परीक्षा के पर्चे बहुत ही आसानी के साथ लीक हुए पुलिस कान्सटेबल भर्ती परीक्षा, जेओए आईटी, ऑड़िटर परीक्षा और न जाने कितनी परीक्षाओं के पर्चें बेचे गए। जिससे हर कहीं प्रदेश की खिल्ली उड़ी फिर भी आयोग प्रशासन की नैतिकता में अभी तक तनिक भी सुधार नहीं आया था और यही घटनाक्रम अभी भी चल रहा था। कर्मचारी चयन आयोग जिस प्रकार से काम को हल करने की बजाय फैलाने का काम कर रहा था। यही एक इशारा आयोग में पनप रहे कुप्रशासन की व्यवस्था को साफ इंगित कर रहा था।
हाल ही में लीक हुए कर्मचारी चयन आयोग के जेओए आईटी की परीक्षा प्रकरण प्रशासन की अंदरूनी भ्रष्ट प्रणाली को साफ जाहिर करता है। इससे सिद्ध होता है कि प्रदेश में अब भ्रष्टाचार सरकारी व्यवस्था की नस-नस में फैल चुका है। बीमार प्रशासनिक व्यवस्था ने अब कैंसर का रूप अख्तियार कर लिया है। जिसकी नसें नौकरशाही में ही समाई है। जो एक असामान्य स्तिथि को दिखाता है। इस प्रकार की अस्वास्थ्यकर प्रतिस्पर्धा भ्रष्टाचार को पोषित करती है। अनैतिकता के अभाव से पैदा हुआ भ्रष्टाचार प्रदेश के गरीब वर्ग को सबसे ज्यादा प्रभावित करता है। अत: संजीदा समाधान अति अवश्यक था।
पिछले महीने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी केंद्रीय सतर्कता आयोग के सतर्कता जागरूकता सप्ताह के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम अपने सम्बोधन में कहा कि 'विकसित भारत के लिए विश्वास और विश्वसनीयता महत्वपूर्ण है" यह गंभीर खतरे हैं इसलिए हमें इसकी तरफ बहुत ध्यान से और गंभीरता के साथ राष्ट्रीय संकट के निवारण की दृष्टि से विचार करना चाहिए। इसमें हठधर्मिता की जरूरत नहीं है। इसमें पहल की जरूरत है। देश को विश्वास दिलाने की जरूरत है।
पेपर लीक प्रकरण की वजह से सुर्खियों में आए कर्मचारी चयन आयोग का काम नवनिर्वाचित मुख्यमंत्री ने तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया है। निसन्देह फैसला बहुत बड़ा है। लेकिन आयोग के टॉप लेवल के अधिकारी भ्रष्टाचार के नशे में मदहोश थे। जो आज विपक्ष में है उनके सत्ता में रहते पेपर लीक होने का ट्रैंड़ ऐसा शुरू हुआ था। अब जरूरत थी एक स्वच्छ पहल की जिसके लिए सरकार तनिक भी नहीं हिचकचाई है। आखिर क्यों संपूर्ण प्रबंधों के बावजूद आयोग का एक भी पेपर सुरक्षित नहीं था। ये एक बड़ा सवाल सरकार के समक्ष था।
प्रादेशिक राजनीति में विरोध की भाषा में अपक्षय
प्रदेश में बीजेपी के चुनाव के ठीक पहले जारी की गई कुछ अधिसूचनाओं को जब सुक्खू सरकार ने डिनोटिफाइ किया तो सरकार के ख़िलाफ़ विपक्ष की नाराज़गी लाजिमी थी। लेकिन जो विरोध के स्वर जिला कांगड़ा के जसवा प्रागपुर में वहाँ के वर्तमान विधायक विक्रम सिंह ठाकुर की अगुवाई में मुख्यमंत्री श्री सुखविन्द्र सिंह सुक्खू व उनकी धर्म पत्नी के लिए उठे सोचनीय है। पूर्व मंत्री के उनके समर्थकों की इस हरकत ने देवभूमि को स्तब्ध कर दिया है। विधायक जी और उनके समर्थकों को सरकार से कुछ नाराजगी थी तो वो सरकार से अपनी आपत्ति जताते जो उनकी अभिव्यक्ति भी है और पूर्व नेता जी की उम्र को शोभा भी देता लेकिन एक महिला को इसमें घसीटना कहाँ तक प्रासंगिक था। जबकि उनका इस प्रकरण से कोई सरोकार भी नहीं था।
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