किताबें शेक्सपीयर और कालिदास के कड़ी को जोड़ती हैं।

राजेश कुमार

किताबों की दुनिया रंगबिरंगी है।हर रंग समेटे हुए,मुस्कुराती हुई, खिल कर खुल जाती है।बचपन हो या जिंदगी की आखिरी पड़ाव ,किताबें हमेशा से हमारे साथी रहें हैं।जब सब बोलना छोड़ देते हैं तो किताबें हमें उस दुनिया में ले जाते हैं जहां हम विचारों के साथ सैर करते हैं।एक पहेली जो पन्नों की फरफराते ही सुलझ जाती है।हकीकत और दूसरे लोकों की यात्रा करते हुए हम बढ़ते हैं।स्वप्न से ही कुछ होता है इन राहों में,पर होता है कुछ जो हमें जीने की राह को आसान बना देती है।जिसे भूख और प्यास की परवाह नही होती है।

               सोचो तो कुछ देर क़िताबों बिना जिंदगी।हम तो बदरंग ही हो जाते है।पन्नों का पलटना जैसे सदियों से रूबरू करा रहा हो।हम खो से जाते हैं।हम बातें करने लगते हैं।शायद वो है जो मेरी बात तो नही सुन रहा है लेकिन हम चलती हुई जिंदगी में खुद ही सफर करने लगते हैं।

         किताबें शेक्सपीयर और कालिदास के कड़ी को जोड़ते है।वो कड़ी जिसे सीमाओं ने रोक दिया है।वो कहानियां हमारे घरों में चहलकदमी करती हुई आती है।वह हमारी और हम उसके हो जाते हैं।

        कविताओं ने फूल सी खुशबू फैला दी है।इस घनघोर अंधरे मन में,जिसकी सुगंध पूरे मन को पवित्र कर देती हैं।कहानियों की अपनी अलग ही दुनिया है।उस दुनिया को  हम अपने दुनिया से जोड़ते है।हम इस कदर जुड़ जाते हैं कि इस कल्पना युक्त दुनिया में ही रच-बस जाते हैं।

                 सहर की शुरुआत और कामगार दुनिया चल पड़ती है।तेज़ ,बहुत तेज़,शायद इतनी तेज की हम कही छूट से जाते हैं।किताब उस घनघोर अंधेरे में उजाला भरती है।जब सूर्य का प्रकाश अपने गंतव्य को चला जाता है।

                किताबें हरियाली है।रौशनी है।खुशबू है।दूरी में पास होने का एहसास है।खुली आँखों को सपनों से सरोबार कर देता है।थोड़ी जिद्द है।करती गम का एहसास है।टूटे हुए को फिर से जोड़ने का जरिया है।वक्त का पहिया है।चलते हुए जिंदगी का सांस है।भौंरों की गुंजन हैं।चिड़ियों की चहचाहट है।रेलगाड़ी की सिटी और गंतव्य पहुँचने की चाह है।यही राह है।शायद यही मंजिल है और हम अथक राही हैं।

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