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जनवरी, 2025 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

"जब काम ना हो, तो नाम बदलकर ही इतिहास रच दो"

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सांकेतिक फोटो। शपथ ग्रहण के बाद ट्रंप का पहला कदम: नाम बदलकर इतिहास रचने की कोशिश जब किसी नेता के पास जनता की उम्मीदों पर खरा उतरने के लिए ठोस योजनाएं न हों, तो वह प्रतीकात्मक कदमों का सहारा लेता है। लेकिन डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के राष्ट्रपति पद की शपथ लेते ही जो पहला कदम उठाया, वह इस धारणा को और मजबूत करता है। ट्रंप ने अपने कार्यकाल की शुरुआत उस परंपरा से की, जो राजनीति में नए आयाम जोड़ने के बजाय पुरानी बहसों को हवा देती है—नाम बदलने की राजनीति। सुरिन्द्र कुमार : राष्ट्रपति ट्रंप ने पहले हफ्ते में ही 'गल्फ ऑफ मैक्सिको' का नाम 'गुल्फ ऑफ अमेरिका' करने की मंशा जाहिर की। यह एक ऐसा कदम हो सकता है जहां वह अपने समर्थकों के बीच तो वाहवाही बटोर लें। परंतु असलियत में यह एक दिखावटी और अप्रासंगिक फैसला है। सवाल उठता है कि क्या नाम बदलने से समुद्र का पानी बदल जाएगा, या अमेरिका की अर्थव्यवस्था और बेरोजगारी जैसे गंभीर मुद्दे हल हो जाएंगे? नाम बदलने की राजनीति: ट्रंप का पहला संदेश डोनाल्ड ट्रंप ने राजनीति में प्रतीकों की ताकत को बखूबी समझा है। शपथ के बाद उन्होंने जो पहला संदेश दिया,...

चुनावों में मुफ्तखोरी का प्रचलन: राज्य की वित्तीय स्थिति पर गहराता संकट

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प्रतीकात्मक फोटो। सुरिन्द्र कुमार : भारत में चुनावों का समय ऐसा होता है, जब राजनीतिक दलों के बीच वोट हासिल करने की होड़ मुफ्त सुविधाओं और योजनाओं के वादों के जरिए चरम पर होती है। चाहे वह मुफ्त बिजली हो, मुफ्त गैस सिलेंडर, लैपटॉप या बेरोजगारी भत्ता, हर राजनीतिक दल जनता को लुभाने के लिए इस 'मुफ्तखोरी' की संस्कृति को बढ़ावा देता है। लेकिन क्या कभी सोचा है कि इन वादों का वास्तविक परिणाम क्या होता है? मुफ्तखोरी: राजनीति की अनिवार्यता या राज्य की बर्बादी? मुफ्त योजनाओं का प्रचलन भारत में नई बात नहीं है। यह प्रवृत्ति तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों से शुरू होकर देशभर में फैल गई। राजनीति में यह मान्यता बन गई है कि जनता को आकर्षित करने का सबसे सरल तरीका मुफ्त योजनाओं का वादा करना है। लेकिन इन योजनाओं की असली कीमत कौन चुकाता है? जवाब है - करदाता। तमिलनाडु: मुफ्तखोरी का प्रारंभिक केंद्र तमिलनाडु वह राज्य है, जिसने सबसे पहले मुफ्त योजनाओं को व्यवस्थित और योजनाबद्ध तरीके से चुनावी रणनीति का हिस्सा बनाया। 1967 में डीएमके का उदय डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) ने 1967 में सत्ता में आते ...

दिल्ली चुनाव 2025: लोकतंत्र की कसौटी पर राजधानी

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सांकेतिक चित्र। सुरिन्द्र कुमार : दिल्ली विधानसभा चुनाव 2025 के लिए राजनीतिक सरगर्मियाँ तेज़ हो चुकी हैं। चुनाव आयोग ने घोषणा की है कि 70 विधानसभा सीटों के लिए मतदान 5 फरवरी 2025 को होगा, और परिणाम 8 फरवरी 2025 को घोषित किए जाएंगे।  प्रमुख दलों की रणनीति: ऐतिहासिक संदर्भ में विश्लेषण दिल्ली की राजनीति का स्वरूप राष्ट्रीय राजनीति का सूक्ष्म प्रतिबिंब है। 1993 में दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा मिलने के बाद से यहाँ राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदला है। इस ऐतिहासिक पृष्ठभूमि में 2025 के चुनाव में प्रमुख दलों की रणनीतियों को समझना ज़रूरी है। आम आदमी पार्टी (आप): नई राजनीति का दावा साल 2013 में आम आदमी पार्टी के उदय ने दिल्ली की राजनीति को नई दिशा दी। पार्टी ने पारंपरिक राजनीति के खिलाफ जन आंदोलन से अपनी पहचान बनाई। लोकपाल आंदोलन की पृष्ठभूमि से उभरी आप ने भ्रष्टाचार, शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी सेवाओं के वादों पर भरोसा जताया। 2025 में, पार्टी की रणनीति अपने उसी 'विकास और सेवा' मॉडल को मजबूत करने की है। पार्टी का फोकस मोहल्ला क्लीनिक, सरकारी स्कूलों में सुधार और मुफ्त बिजली-पानी योज...

डोनाल्ड ट्रम्प का शपथ ग्रहण समारोह: सत्ता में ऐतिहासिक वापसी

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सुरिन्द्र कुमार : 20 जनवरी, 2025 को डोनाल्ड ट्रम्प ने संयुक्त राज्य अमेरिका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली, जिससे वह ग्रोवर क्लीवलैंड के बाद पहले राष्ट्रपति बने, जिन्होंने दो गैर-लगातार कार्यकाल पूरे किए। यह समारोह कैपिटल रोटुंडा में आयोजित हुआ, जहां खराब मौसम के कारण शपथ ग्रहण का आयोजन किया गया। #BreakingNews 🔹वाशिंगटन डीसी: डोनाल्ड ट्रंप ने अमरीका के 47वें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली। #DonaldTrump #DonaldTrump2025 #DonaldJTrump #OathCeremony #Inauguration2025 #USPresident #WhiteHouse #Trump @IndianEmbassyUS | @WhiteHouse | @MEAIndia pic.twitter.com/RnHxmT0874 — आकाशवाणी समाचार (@AIRNewsHindi) January 20, 2025 दुनिया भर से इस आयोजन को देखा गया, और ट्रम्प के सत्ता में लौटने के साथ यह उम्मीद जताई गई कि वह अपने "अमेरिका फर्स्ट" के सिद्धांतों को जारी रखेंगे, साथ ही वैश्विक नेतृत्व की बदलती गतिशीलताओं को भी उजागर करेंगे। भारत और अन्य देशों के लिए इस आयोजन के व्यापार, सुरक्षा और अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर महत्वपूर्ण प्रभाव थे। शपथ ग्रहण समारोह यह समारोह भव्यता और ...

महाकुंभ: ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और सामाजिक आस्था का अद्भुत संगम

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विश्व के सबसे बड़े धार्मिक समागम महाकुम्भ में विभिन्न अखाड़ों का छावनी प्रवेश निरंतर जारी है। इसी कड़ी में श्री तपोनिधि पंचायती श्री आनंद अखाड़े ने भव्य छावनी प्रवेश यात्रा निकाली। #MahaKumbh2025 #MahaKumbhCalling #एकता_का_महाकुम्भ #सनातन_गर्व_महाकुम्भ_पर्व pic.twitter.com/aZHC0u6PGr — Mahakumbh (@MahaKumbh_2025) January 7, 2025 सुरिन्द्र कुमार : महाकुंभ भारत का एक अद्वितीय धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन है, जो दुनिया भर के लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करता है। यह आयोजन हर 12 साल में चार प्रमुख तीर्थ स्थलों पर होता है: प्रयागराज (इलाहाबाद), हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। महाकुंभ का महत्व न केवल धार्मिक दृष्टि से है, बल्कि यह भारतीय समाज की सामाजिक एकता, संस्कृति और आस्था को भी दर्शाता है। महाकुंभ की शुरुआत: इतिहास और पुराण महाकुंभ की शुरुआत भारतीय पुराणों और ऐतिहासिक कथाओं से जुड़ी हुई है। समुद्र मंथन के दौरान अमृत कलश से अमृत की कुछ बूँदें पृथ्वी पर गिरी थीं, जो चार स्थानों पर पड़ीं: प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक। इन स्थानों पर हर 12 साल में कुंभ मेला आयोजित किया जाता है, और जब...