हिमाचल में कांग्रेस का नया नारा : घर का रोजगार सबसे प्यारा


सुरिन्द्र कुमार — राजनीति और पारिवारिक संबंधों के जटिल नृत्य को दर्शाते हुए हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस पार्टी का एक साल में 1 लाख सरकारी नौकरियों का भव्य वादा अब गंभीर रूप से पूरा होता दिख रहा है।


हाल ही में, उपमुख्यमंत्री की बेटी की असिस्टेंट प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति हुई है। जिसके लिए अब नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल खड़े करना बेवकूफ़ी होगी। क्योंकि, अगर प्रदेश में मुख्यमंत्री, उपमुख्यमंत्री और मंत्रियों के बच्चों को ही नौकरी नहीं मिलेगी तो प्रदेश की बेरोजगारी कैसे कम होगी? ये बात बेरोजगार युवाओं को भी समझनी होगी। 


हालांकि, वे मान सकते हैं कि जो वादा राज्य के कई बेरोजगार युवाओं के लिए आशा की किरण माना जा रहा था। अब पारिवारिक मोड़ लेता दिख रहा है। लेकिन, प्रदेश के बेरोजगार समझते हैं, कि मुख्यमंत्री जी की दो बेटियाँ हैं। इसलिए एक नई परंपरा स्थापित की जा रही है। जो राज्य में रोजगार के संबधों को फिर से परिभाषित करेगी। स्वाभाविक है, लेकिन वे यह भी समझते हैं कि प्रक्रिया में समय लगता है। उन्हें इंतजार करते रहना चाहिए। इसे आत्मविश्वास बढ़ता है। और वैसे भी उनके परिवारों को कौन सी सरकार चलानी है।


बहर-हाल, उधर विपक्षी आग में घी डालते हुए मुख्यमंत्री जी को कोस रहे हैं कि उन्होंने उपचुनावों के माध्यम से अपनी धर्मपत्नी की राजनीतिक में एंट्री कर दी है। लिहाज़ा, इसके लिए लंबे समय से सेवा कर रहे कांग्रेस पार्टी के सदस्य का टिकट काट दिया। अब अलोचकों को कौन समझाए कि भूतपूर्व उम्मीदवार हार रहे थे...और वैसे भी वह कॉन्स्टीटुएन्सी मुख्यमंत्री जी का ससुराल है। अलबत्ता, साले साहब का बलिदान बनता था। 


फिर भी कुछ लोगों को लगता है कि मुख्यमंत्री के इस कदम ने अब पार्टी के अंदर असंतोष व मतदाताओं के बीच नाराजगी का बीज बो दिया है। परंतु, उन्हें समझना चाहिए कि 'जो जीता वही सिकंदर' होता है। अत: जो मुख्यमंत्री अपनी गिरती हुई सरकार बचा सकता है। उसको आप लोग हल्के में ले रहे। तब फिर आप लोगों ने विधानसभा के नए सत्र में सतपाल सत्ती साहब की मुख्यमंत्री पर की गई टिप्पणी को नहीं सुना है। 


हॉं, विश्लेषक इस घटनाक्रम के विशलेषण से कयास लगा सकते हैं कि प्रतीक्षित 1 लाख नौकरियाँ सार्वजनिक लाभ से अधिक पारिवारिक मामला हो चुकीं हैं। लेकिन उन्हें यह जानना चाहिए कि, "दान घर से शुरू होता है," और हिमाचल के मामले में अब यह राजनीतिक अवसर भी है। यूँ कहें तो 'अधिकार'  है, भई। बस संविधान में दर्ज़ होना बाकी है। 


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