हिमाचल प्रदेश में 14वीं विस चुनाव

दैनिक हिमाचल:

दुनिया के सबसे विशाल लोकतंत्र की खूबी है कि यहां सर्वोच्च सत्ता जनता में निहित होती है तथा एक निश्चित अंतराल के बाद संघ व राज्यों में चुनाव होते हैं. यह एक सरकार की व्यवस्था होने के साथ साथ एक विशिष्ट प्रकार की राज्यव्यस्था है और एक सामाजिक प्रणाली है. जिसमें सत्ता का स्थांनातरण होता है या कई बार एक ही पार्टी दुबारा ससत्तारूढ़ हो जाती है.

हिमाचल में चौदहवीं विधानसभा चुनाव

हिमाचल प्रदेश में भाजपा की कोशिश राज्य में फिर से सरकार बनाने की है. प्रदेश की चौदहवीं विधानसभा की 68 सीटों के लिए चुनाव की तारीख तय हो चुकी है। इस सियासी जंग में भाजपा सरकार बदलने का रिवाज तोड़ने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा रही है तो कांग्रेस सत्ता में लौटने के लिए कढ़ी मश्कत कर रही है। 

वर्ष 1990 के बाद प्रदेश में कोई भी सरकार रिपीट नहीं हो पाई है। इस मिथक को तोड़ने के लिए भाजपा केंद्र और राज्य सरकार के डबल इंजन की ताकत से रिवाज बदलने का नारा देकर चुनाव लड़ रही है। कांग्रेस जवाब में रिवाज के बजाय सरकार बदलने के एलान के साथ रण में उतरी है.

डबल-इंजन में नेतृत्वविहीन हिमाचल

हिमाचल प्रदेश में होने जा रहे चौहदवें विधानसभा चुनाव इस बार काफी जटिल नज़र आ रहे हैं. जहाँ दोनों बड़े दल आज एक तगड़े नेतृत्व के आभाव में चुनाव में अपनी किस्मत आज़माने जा रहे हैं. लेकिन वो एक धागा जो इन सब मोतियों को खुद में पिरो सकता था वो कहीं भी दूर तलक नज़र नहीं आ रहा है.

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा 2017 के चुनाव में मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किए गए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर सीट पर 2,933 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार राजिन्दर राणा हार गए थे.  जिसके पश्चात पार्टी हाई कमान ने भी उन्हें दरकिनार ही कर दिया था.

मौजूदा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी व बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा दोनों ने प्रदेश में चुनाव में वर्तमान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को सामने रखकर मोर्चा संभाला है. अब यह समन्वय कितना कारगर साबित होगा परिणाम आने पर ही मालूम होगा.

जब पहाड़ में खिला था कमल लेकिन कुम्हलाये थे धूमल

हिमाचल प्रदेश में 1993 से चल रही सत्ता-विरोधी लहर ने इस बार के आखिरी विधानसभा चुनाव में भी महत्वपूर्ण भूमिका अदा की. जिसमें  सत्तारूढ़ कांग्रेस को इस चुनाव में पराजय का सामना करना पड़ रहा था.  2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 48.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 44 सीटें हासिल कर हिमाचल में सरकार बनाई थी। वहीं, 41.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 21 सीटों पर जीतकर कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही. 

बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह द्वारा मुख्यमंत्री प्रत्याशी घोषित किए गए पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल सुजानपुर सीट पर 2,933 मतों से कांग्रेस उम्मीदवार राजिन्दर राणा हार गए थे. वहीं एंटी इनकंबेंसी की सामना कर रहे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने अर्की सीट पर 6,051 मतों से जीत हासिल की थी.

राजा वीरभद्र की कमी में बिखरती कांग्रेस

यह कहने और मानने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि प्रदेश में कांग्रेस का अगर कोई मजबूत स्तंभ था तो वह राजा वीरभद्र सिंह थे. लेकिन वह भी छ: बार मुख्यमंत्री बनने पर सरकार नहीं रिपीट कर पाए थे. आखिरी चुनाव में जहाँ वीरभद्र सिंह ने कांग्रेस की कमान संभाली थी. जो चुनाव कांग्रेस हार गई थी. अब पिछले साल उनके स्वर्गवास हो जाने के कारण पार्टी में काफी उथल - पुथल देखने को मिल रही है.

आम आदमी पार्टी की एंट्री

पंजाब में शानदार जीत के बाद आम आदमी पार्टी अब हिमाचल में भी जीत को लेकर आश्वस्त थी. हिमाचल प्रदेश में 1985 के बाद कोई भी पार्टी राज्य में लगातार चुनाव नहीं जीत पाई थी. हालांकि कांग्रेस और बीजेपी के बीच होने वाला मुकाबला आम आदमी पार्टी की एंट्री से त्रिकोणीय देखा जाने लगा था. लेकिन बाद में आप ने पूरा फोक्स गुजरात पर केंद्रित कर दिया. वजह साफ है कि आम आदमी पार्टी पहाड़ी भावना को पकड़ नहीं पाई.

आप के कुछ उम्मीदवार हिमाचल में अच्छा प्रदर्शन कर सकते हैं. ऐसा राजनीति के पंडित बता रहे हैं. भले ही अब आप उम्मीदवार काफी हद तक अकेले लड़ाई लड़ रहे हैं और पार्टी गुजरात में केंद्रित है, लेकिन ये भाजपा और कांग्रेस दोनों के वोटों में कटौती करके अग्रणी की संभावना को खराब कर सकते हैं.

जबना चौहान

कभी हिमाचल प्रदेश की सबसे युवा पंचायत प्रधान के रूप में छवि बनाने वाली जबना चौहान को आप ने मंडी जिले के नाचन से टिकट दिया है। उन्होंने अपनी पंचायत में शराब पर प्रतिबंध लगा दिया था। संसाधनों की कमी का सामना करने के बावजूद उन्हें बड़ी संख्या में वोट मिल सकते हैं.

राजन सुशांत

पूर्व सांसद राजन सुशांत कांगड़ा जिले की फतेहपुर सीट से चुनाव लड़ रहे हैं. जहाँ वे 2017 के विधानसभा चुनावों में उन्होंने निर्दलीय के रूप में अपनी किस्मत आजमाई थी. इसके अलावा उन्होंने आखिरी बार 2021 का उपचुनाव निर्दलीय के रूप में लड़ा था. जहाँ भवानी सिंह पठानिया  विजयी हुए थे. राजन सुशांत उपचुनाव हार के पश्चात काफी सक्रिय रहे हैं और पुरानी पेंशन योजना (OPS) की मांग का समर्थन किया है.

मनीष ठाकुर

पांवटा साहिब (सिरमौर) निर्वाचन क्षेत्र में जहां भाजपा बागियों ने भाजपा उम्मीदवार और मौजूदा विधायक और बिजली मंत्री सुख राम चौधरी को परेशानी में डाल दिया है और मनीष ठाकुर यहाँ आप का झंडे तले अपना भाग्य अजमाएंगे. इसके अलावा उनका मुकाबला कांग्रेस उम्मीदवार किरणेश जंग से भी है, जो इस सीट से दो बार हार चुके है. उनका दावा है कि वह लम्बे समय से यहां काम कर रहे है जब वे एनएसयूआई और यूथ कांग्रेस में थे. उन्होंने 2018 में यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में विक्रमादित्य सिंह की जगह ली, जबकि विक्रमादित्य सिंह दिसंबर 2017 में हिमाचल विधानसभा के लिए चुने गए थे.

हरमेल धीमान

सोलन जिले की कसौली (एससी) सीट के लिए हरमेल धीमान आप के टिकट मिलने पर मुकाबले को त्रिकोणीय बना दिया है. धीमान कई सालों से बीजेपी के साथ थे.

धर्मपाल चौहान

सोलन जिला परिषद के पूर्व अध्यक्ष आप उम्मीदवार धर्मपाल चौहान नालागढ़ से आप ने टिकट दिया है. बीजेपी और कांग्रेस के बागी नेताओं की कलह में धर्मपाल चौहान को फायदा मिल सकता है.


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