परसाई जी का प्रथम स्मगलर।
दैनिक हिमाचल:
यह लेख हरिशंकर परसाई जी की कालजयी कृति, 1982 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत 'विकलांग श्रद्धा का दौर' से पूरा का पूरा उकेरा गया है। परसाई साहब का जिक्र आते ही उनकी सहज़ और पैनी व्यंग्य शैली का ख्याल हमारे ज़हन में आता है। जिनका व्यंग्य के बारे में मानना था – व्यंग्य अब शूद्र से क्षत्रिय मान लिया गया है। विचारणीय है कि वह शूद्र से क्षत्रिय हुआ है, ब्राह्मण नहीं, क्योंकि ब्राह्मण कीर्तन करता है।
प्रथम स्मगलर
लक्ष्मण मेघनाथ की शक्ति से घायल पड़े थे। हनुमान उनकी रक्षा के लिए हिमाचल प्रदेश से संजीवनी नामक दवा लेकर लौट रहे थे कि अयोध्या के नाके पर धर लिए गए। पकड़ने वाले नाकेदार को हनुमान ने पेल दिया। राजधानी में हड़कंप मच गया कि बड़ा बलशाली स्मगलर आया हुआ है। पूरी फोर्स भी उसका मुकाबला नहीं कर पा रही।
आखिर भरत और शत्रुघ्न आए।
हनुमान अपने आराध्य रामचंद्र के भाईयों को देखकर दब गए।
शत्रुघ्न ने कहा – इन स्मगलरों
के मारे नाक में दम है। भैया , आप तो संयास लेकर बैठ गए हैं। मुझे भुगतना पड़ता
है।
भरत ने हनुमान से पूछा –
कहां से आ रहे हो?
हनुमान – हिमाचल प्रदेश
से।
भरत – क्या है तुम्हारे
पास? सोने के बिस्कुट, गांजा, अफीम?
हनुमान – दवा है।
शत्रुघ्न ने कहा – अच्छा दवाईयों
की स्मगलिंग चल रही है। निकालो, कहां है।
हनुमान जी ने संजीवनी
निकालकर रख दी। कहा – मुझे आपके बड़े भाई रामचन्द्र ने इस दवा को लेने के लिए भेजा
था।
शत्रुघ्न ने भरत की तरफ
देखा, बोले – बड़े भैया क्या करने लगे हैं। स्मगलिंग में लग गए हैं। पैसे की तंगी
थी तो हमसे मंगा लेते। स्मलिंग के धंधे में क्यों फंसते हैं। इससे बड़ी बदनामी
होती हैं।
भरत ने हनुमान से पूछा –
ये दवा कहां ले जा रहे थे. कहां बेचोगे इसे.
हनुमान ने कहा – लंका ले
जा रहा था।
भरत ने कहा – अच्छा, वहां
उत्तर भारत का स्मगल किया हुआ माल बिकता है। कौन खरीदते हैं. रावण के लोग।
हनुमान ने कहा – ये दवा
तो मैं राम के लिए ही ले जा रहा था। बात यह है कि आपके भाई लक्ष्मण घायल पड़े हैं।
वे मरणासन्न हैं। इस दवा के बिना ले बच नहीं सकते।
भरत और शत्रुघ्न ने
एक-दूसरे की तरफ देखा। तब तक रजिस्टर में स्मगलिंग का मामला दर्ज हो चुका था।
शत्रुघ्न ने कहा – भरत भैया,
आप ज्ञानी हैं। इस मामले में आपकी नीति क्या कहती है? शासन का क्या कर्तव्य है?
भरत ने कहा – स्मगलिंग तो
अनैतिक है। पर स्मगल किए हुए सामान से अपना या अपने भाई-भतीजे का का फायदा होता है, तो
यह काम नैतिक हो जाता है। जाओ हनुमान, ले जाओ दवा।
मुंशी से कहा – रजिस्टर का
पन्ना फाड़ दो।
परसाई जी के बारे में
हरिशंकर परसाई जी का जन्म
22 अगस्त, 1924 को जमानी गांव, जिला होशंगाबाद (मध्य प्रदेश) में एक मध्यवित्त
परिवार में हुआ था। परसाई जी स्वयं अविवाहित रहे। मैट्रिक से पहले इनकी मां का
स्वर्गावास हो गया और पिता को भी लकड़ी के कोयले की ठेकेदारी करते असाध्य बीमारी
थी। फलस्वरूप गहन आर्थिक अभावों के बीच पारिवारिक जिम्मेदारियां। यहीं से वास्तविक
जीवन संघर्ष, जिसने ताकत दी और दुनियावी शिक्षा भी।
प्रकाशित कृतियां
हंसते है रोते हैं, जैसे
उनके दिन फिरे (कहानी संग्रह), रानी नागफनी की कहानी, तट की खोज (उपन्यास), तब की बात
और थी, भूत के पांव पीछे, बेईमानी की परत, बैष्णव की फिसलन, पगड़ंड़ियों का जमाना,
शिकायत मुझे भी है, सदाचार का ताबीज, विकलांग श्रद्धा का दौर, तुलसीदास चंदन
घिसें, हम इक उम्र से वाकिफ हैं, जाने पहचाने लोग (व्यंग्य निबंध संग्रह), पूछो
परसाई से (साक्षात्कार)।
परसाई साहब केन्द्रीय
साहित्य अकादमी पुरस्कार, मध्यप्रदेश का शिखर सम्मान आदि पुरस्कारों से नवाजे गए।
10 अगस्त, 1995 को इस महान साहित्य की विभूती का निधन हो गया। इस लेख में लिखा गया
ये अंश उनकी कृति राजकमल से प्रकाशित 'विकलांग श्रृद्धा का दौर' से लिया गया है।
नोट : लेख का एक-एक शब्द राजकमल पेपरबैक्स से प्रकाशित विकलांग श्रद्धा का दौर से उद्धृत किया गया है।
Bhut shii👍👍
जवाब देंहटाएंBahut badiya👍
जवाब देंहटाएंएक दिन मुझसे एक संघ के अध्यक्ष ने कहा- “यार आजकल लोग तुम्हारे बारे में बहुत बुरा-बुरा कहते है।”
जवाब देंहटाएंमैंने कहा- “आपके बारे में मुझसे कोई भी बुरा नहीं कहता। लोग जानते है कि आपके कानो के घूरे में इस तरह का कचरा मजे में डाला जा सकता है।”
- हरिशंकर परसाई 😊😊😊😊